प्रातःस्मरणीय श्लोक
श्री गणेश प्रातः स्मरण स्तोत्र प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् । उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड– माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् । । अर्थ- अनाथों के बन्धु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल…
श्री गणेश प्रातः स्मरण स्तोत्र प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् । उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड– माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् । । अर्थ- अनाथों के बन्धु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल…
गीता जयन्ती पर विशेष — गीता जयंती मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है |इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता…
आदित्य हृदय स्तोत्र वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु…
चुम्बकीय शक्ति से ओतप्रोत क्षेत्र जो अल्मोड़ा उत्तराखंड में स्थित है। यहां इसरो द्वारा चुम्बकीय तरंगों का आकलन किया गया है। यह स्थान वैज्ञानिकों के…
पौराणिक मान्यताओं में देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र जिसे केदारखंड भी कहा गया है, को भगवान शंकर की तपस्थली और कूर्मांचल या कुमाऊं क्षेत्र को…
परिचय - धर्मार्थ
धर्म का अर्थ पूर्णत: प्रकट नहीं किया जा सकता है, लेकिन इस विषय पर अध्ययन, मंथन एवं विवेचन मनुष्य की उपलब्ध मानसिक सामर्थ्य के आधार पर लोक कल्याण हेतु प्रस्तुत किया जा सकता है.
हिंदुत्व, अनादि काल से चली आ रही जीवन जीने की कला एवं परंपरा है, कि अनंत आयामों को छूकर आंदोलित करने का सार्थक प्रयास किया जा सकता है.
अध्यात्म विचारों की परिष्कृतता है जो मनुष्य के गुण एवं रहस्य को उजागर करते हुए जीवन एवं जीवन की अच्छी बुरी घटनाओं से सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है. इस साधन के अनवरत अभ्यास से मनुष्य परम शक्ति से सायुज्य स्थापित कर सकता है.
जीवन की उहापोह में व्यक्ति कुछ क्षण भगवत भजन, भक्ति के लिए नहीं निकाल पा रहा है जिज्ञासु प्रवृत्ति होने के कारण धार्मिक क्रियाकलापों के लिए सर्वप्रथम ‘ऐसा क्यों?’ यह विचार मन में आता है। इन सभी जिज्ञासाओं के लिए हम लेकर आ रहे हैं वैज्ञानिक तरीके से संशोधित धार्मिक ज्ञान, जो निश्चित ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के मनुष्यों के लिए कारगर सिद्ध होगी।
मनुष्य के जन्म से मरण तक के अंतराल में अनेक घटनाएं होती रहती हैं उन घटनाओं समस्याओं का समाधान पूरी कोशिश करने के उपरांत भी नहीं हो पाता इसका हल वैदिक परंपरा से चली आ रही वैज्ञानिक ज्ञान से ढूंढना श्रेयस्कर है।
पारंपरिक प्रथाओं के प्रचलन को मूर्त रूप देने से पहले उसकी वैज्ञानिकता, उपयोगिता एवं सार्थकता का परीक्षण अति आवश्यक है क्योंकि यह सहज मानव स्वभाव है.
उपर्युक्त विषय पर विचार करने, विचार रखने और एक आधार युक्त निर्णय पर पहुंचने के लिए यह एक सूक्ष्म प्रयास किया जा रहा है।
श्री गणेश प्रातः स्मरण स्तोत्र प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् । उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड– माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् । । अर्थ- अनाथों के बन्धु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल…
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