ज्योतिष एक विज्ञान

छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते।
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते॥
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्।
तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥

'पाणिनीय शिक्षा' श्लोक ४१-४२

'पाणिनीय शिक्षा'मेंछन्द को वेदों का पाद, कल्पशास्त्र को हाथ, ज्योतिषशास्त्र को नेत्र, निरुक्तशास्त्र को कान, शिक्षाशास्त्र को नाक और व्याकरण को मुख कहा गया है।

प्रत्येक मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ही निर्धारित होते है। मनुष्य के जीवन में आने वाले उतार-चड़ाव, उन्नति-अवनति, सुख-दुःख, चारित्रिक गुण-दोष, कार्यक्षेत्र आदि सभी कुछ ग्रह स्थिति के अनुसारसंचालित होते है. भूत, भविष्यएवं वर्तमान के अज्ञात रहस्यों को जानना ज्योतिष शास्त्र कहलाता है. वस्तुतः इसका प्रधान विषय ‘काल’ ही है।दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, वर्ष, लग्न, एवं मुहूर्त आदि का ज्ञान इसी शास्त्र से होता है।

ज्योतिषां सूर्यादिग्रहणां बोधकं यत शास्त्रम तत ज्योतिः शास्त्रम

अर्थात् सूर्यादि ग्रहों का कालबोध करने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है.वेदांग शास्त्रों में ज्योतिष का अति महत्वपूर्ण स्थान है. महर्षि लगध ने इसे 'काल-ज्ञानं प्रवक्ष्यामि'के अनुसार कालका ज्ञान भी कहा है। नक्षत्रों और ग्रहों की गति और स्थिति के आधार पर जातक के सम्पूर्ण जीवन पड़ने वाले शुभ व अशुभ प्रभाव को बताने वाला शास्त्र ज्योतिष शास्त्र कहलाता है. वेदांगज्योतिष में गणित के महत्त्व का प्रतिपादन इन शब्दों में किया गया है-

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्॥

वेदांगज्योतिषश्लोक४

अर्थात् जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे ऊपर है, उसी प्रकार सभी वेदांगशास्त्रों मे गणित अर्थात् ज्योतिष का स्थान सबसे ऊपर है।

नारद संहिता के अनुसार ज्योतिषशास्त्र के तीन स्कन्ध माने गए- सिद्धान्त, संहिता और होरा। इसीलिये ज्योतिषशास्त्र को 'त्रिस्कन्ध' कहा जाता है। कहा गया है –

सिद्धान्तसंहिताहोरारूपं स्कन्धत्रयात्मकम्।
वेदस्य निर्मलं चक्षुर्ज्योतिश्शास्त्रमनुत्तमम् ॥

नारद संहिता १।४

वाराहमिहिर नेभी ‘ज्योतिषशास्त्रमनेकभेदविषयं स्कंधत्रयाधिष्ठितम्’ कह कर ज्योतिष शास्त्र के अनेक भेदों में प्रमुख तीन भेदों को ही स्वीकार किया है। इस प्रकार प्रायः सभी लोगों को विदित है कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र आज विश्व जनमानस का अभिन्न अंग सा हो गया है।ज्योतिष शास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथ प्रचलित व प्रसिद्ध है उनमें से प्रमुख ग्रन्थों का नाम निम्नवत है-

पंचसिद्धांतिका, सूर्यसिद्धांत, ब्रह्मसिद्धांत, आर्यभट्टीयम्, सिद्धांतशिरोमणि, सिद्धांत तत्वविवेक, बृहत्संहिता (वाराही संहिता), नारद संहिता, बृहत्पाराशर होरा शास्त्र, बृहज्जातक, सारावली, सर्वार्थ चिंतामणि, जातक पारिजात, होरा रत्न आदि।

ज्योतिष अनुकूल या प्रतिकूल समय की भविष्यवाणी कर सकता है जिसकी सहायता से मनुष्य अनुकूल समय में अपने आवश्यक कर्म को पूरा कर सकता है तथा प्रतिकूल समय में अशुभ फल से बचने के लिए सतर्क रहकर उपाय भी कर सकता है. शास्त्रों के अनुसार यह समस्त संसार ग्रहों की स्थिति से ही प्रेरित होता हैं. सृष्टि, रक्षण एवं संहार इन तीनों के ज्योतिष शास्त्र ग्रहों द्वारा प्रभावित होने के कारण यह स्पष्ट हो जाता है कि यह शास्त्र जीवन में हमारी अत्यधिक सहायता करता है।

ज्योतिष में रुचि रखने वाले सभी व्यक्तियों को ज्योतिष विज्ञान के मूल तत्वों का ज्ञान अवश्य प्राप्त होना चाहिए ।यद ब्रह्माण्डे तत्पिंडे’ जिन तत्वों से ब्रह्माण्ड का सृजन हुआ है, उन्ही तत्वों से ब्रह्माण्डगत समस्त पिंडों का भी सृजन हुआ है।मानव शरीर के द्रव्यमान का लगभग ८०% भाग तरल रूप मे तथा रक्त कोशिकोओं में लौह व अन्य खनिज होते हैं।अर्थात् प्रत्येक मनुष्य में ग्रहों या पिन्डों का प्रभाव निश्चित ही पडे़गा, क्योंकि ग्रहउन्हें कहते है, जिसका प्रभाव हम ग्रहण करते है।संसार में घटित होने वाली अनेक घटनाओं में ज्योतिष का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।यथा-

  1. पूर्णमासी/अमावस्या का प्रकृति पर प्रभाव.
  2. मानसिक रोगियों पर पूर्णमासी का पूर्ण प्रभाव पड़ता है,इसके प्रभाव में आने वाला मनुष्य ल्यूनाटिक (पागल मनुष्य) कहा जाता है.
  3. पूर्णमासी वअमावस्याको समुद्र के जल की सतह गुरुत्वीय आकर्षण के कारण ऊपर (ज्वार-भाटा)आ जाती है।
  4. यदि चन्द्र दुर्बल है तो पूर्णिमा को फाइलेरिया की वृद्धिहोती है.
  5. अधिकांश हत्याकांड व अपराध अमावस्या और पूर्णिमा कोहीहोते हैं।
  6. कुमुदिनी नामक पुष्प केवल चन्द्र-किरणों से ही खिलते हैं।

प्रत्येक पिंड गुरुत्वीय शक्तिसे एक दूसरे पर आकर्षक बल दो मूल सिद्धांतहै.

गुरुत्वीय  बल  ∝पिंडोकेद्रव्यमानकागुणनफल

अर्थात्गुरुत्वीय बल मुख्यतया पिंडो के द्रव्यमान पर निर्भर करता है. जितना अधिक पिन्डों का द्रव्यमान होगा उतना ही अधिक गुरुत्वीय बल होगा।

गुरुत्वीय बल ∝१/ पिंडो के बीच की दूरी

अर्थात्जितना अधिक पिन्डों के बीच की दूरी होगी उसी अनुपात में गुरुत्वीय बल कम होगा।

स्कंध

(१) सिद्धांत

ग्रहों की गति, स्थिति, अयनांश, गणित आदि सिद्धांत इस स्कन्द मेंविस्तार से लिखी गयी है. सृष्टि केसृजन से लेकर प्रलय तक की कालगणना, सौर, सावन, चंद्र, नक्षत्र आदि काल मानों का भेद, ग्रहों की गति एवं स्थिति का परिचय, पृथ्वी एवं नक्षत्रों की स्थिति का वर्णन, वेधादि कार्यों में सिद्धि हेतु यंत्र आदि वर्णन, गणित प्रक्रिया का उत्पत्ति सहित विवेचनादी जिस ग्रंथ में होता है, वह सिद्धांत पर स्कंध कहलाता है।

(२) संहिता

इसके अंतर्गत भूमिशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, गृहोपकरण, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, आदि मांगलिक कार्यो का मुहूर्त का विस्तारपूर्वक विवरण किया गया  है. मुहूर्त शास्त्र के सभी ग्रंथों में मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ निर्विवाद रूप से श्रेष्ठ है. इस ग्रंथ की रचना श्री रामाचार्य जी ने  की थी. आज इस ग्रन्थ का प्रयोग सर्वत्र होता है.

(३) होरा

इसकी उत्पत्ति अहोरात्र शब्द से है. कालक्रम के साथ अहोरात्र ‘होरा’ शब्द में बदल गया.इसमें जातक के जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति अनुसार जातक का शुभ-अशुभ फल का विचार किया जाता है. इसमें जन्म कुंडली के द्वादश भावों में स्थित ग्रहों का फल बताया जाता है.होरा स्कंध मुख्य रूप से व्यष्टि परक फलादेश से संबंधित है. इसमें जातक विशेष के जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का और उनके शुभाशुभत्व का विचार किया जाता है.

डाँ०हेमन्त के० जोशी