श्राद्ध पक्ष का महत्व

श्राद्ध पक्ष का महत्व

भारतीय सभ्यता एवं संस्कारों में माता तथा पिता के प्रति आदर व सेवा का भाव रखने की परंपरा चली आ रही है। उनके वृद्ध होने पर उनका ख्याल रखने व मरणोपरान्त प्रतिवर्ष उनको याद रखने हेतु व उन्हें तृप्त करने हेतु उनकी मृत्यु तिथि पर उनका पार्वण श्राद्ध करने की शास्त्रों ने आज्ञा दी है। यह मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष अमावास्या, 16 दिन, के समय पितृ पक्ष होता है। जिस समय सारे अन्य कार्यों को छोड़कर पितरों की मुक्ति हेतु लोग अपने पूर्वजों को जल देकर व श्राद्ध करके पितृ आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। यह भी उल्लिखित है कि मनुष्य हर वर्ष कम से कम एक बार अपने पूर्वजों को याद करे तथा हमें सामातिक पहचान दिलाने हेतु भी श्राद्ध कर्म उत्तम माना गया है ।

संक्षिप्त विधि की अगर बात करें तो कई स्थानों की परम्परानुसार श्राद्ध से एक दिन पूर्व केवल एक समय शुद्ध भोजन खाया जाता है। ये सारे नियम उस पति पत्नि के लिये कहे गये हैं जिसमें पुरूष की ओर के माता या पिता में से कोई एक या दोनों स्वर्गवासी हो गये हों । यद्यपि आज का आधुनिक समाज पुत्रियों को भी पूर्ण हक दे रहा है कि वो भी अपने किसी भी पित्र का श्राद्ध कर सके। यह सर्वथा भी उचित जान पड़ता है क्योंकि हिन्दू धर्म के कुछ नियमों को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत किया जाना भी सर्वविदित है। इस प्रकार पुरूष प्रधानता के साथ ही जातिवाद व पुत्र पुत्रीवाद भी कभी-कभी सामाजिक कलंक जान पड़ते हैं।

बहरहाल श्राद्ध के मुख्य दिवस में किसी विद्वान पंडित के द्वारा श्राद्ध कराने के उपरान्त यथासम्भव भोजनदान व वस्त्रदान का नियम भी उल्लिखित है। मातृ व पितृ पक्ष की कुल तीन तीन पीढ़ियों तक का श्राद्ध किया जाता है। अर्थात अगर कोई मनुष्य अपने माता पिता का श्राद्ध करता है तो वह पिछली दो माता वर्ग जिन्हें माता, मातामह, प्रमातामह कहा जाएगा व दो पिता वर्ग जिन्हें पिता, पितामह, प्रपितामह कहा जाएगा, का भी श्राद्ध करेगा ।

चाहे जो भी हो, किसी भी अनुष्ठान के द्वारा किसी को याद करना चाहे वह देवता  या मनुष्य एक उत्तम कार्य कहा जा सकता है, तथा इसी से दान की महत्ता भी बनी रहती है।


राज कुमार पांडे

Ph.D., Department of Microbiology

College of Basic Sciences and Humanities

G. B. Pant University of Agric. and Tech

Pantnagar, U.S. Nagar, Uttarakhand