हैड़ाखान बाबाजी की शिक्षाएं
"परमेश्वर के चरणों में अपने अवगुण को समर्पण करके हमें सभी से सत्य, सरलता और प्रेम से व्यवहार करना चाहिए।"
- हैड़ाखान बाबाजी
बाबाजी ने यह घोषणा की थी कि वह सनातन धर्म को पुनर्जीवित के लिए प्रकट हुए हैं। हर धर्म के आधारस्तम्भ 'सत्य, सरलता और प्रेम' ही प्रकृति का शाश्वत नियम है, जोकि मानव जीवन को परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखता है।
उन्होंने कहा कि 'कलियुग में भौतिकवाद के उत्थान और आध्यात्मिक सोच के पतन के कारण मानव जीवन खतरे में आ चुका है। इस शताब्दी में विश्व में हर जगह विनाश, संघर्ष और परिवर्तन देखने को मिलेगा। केवल भगवान के नाम का स्मरण,जप और सत्य, प्रेम व सद्भाव से रहने वाले मनुष्य ही इससे बच पाएंगे।'
'आप कुछ भी करें उसमें सद्भावना ढूंढें। जब तुम शांत हो तब मैं भी शांत हूँ। जब तुम विपत्ति में हो, तब मैं भी विपत्ति मैं हूँ। तुम खुश हो, तो मैं भी खुश हूँ। इसलिए प्रसन्न रहें, भगवान पर आस्था रखें, सब कुछ आपकी आस्था पर निर्भर करता है।'
बाबाजी अक्सर कहते 'ईश्वर का नाम परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली है।' उन्होंने भरोसा दिलाया कि आने वाले विध्वंश के बाद एक नए जगत, नए युग और नए धार्मिक साम्राज्य का उदय होगा।
भगवान शिव के परमावतार हैड़ाखान बाबाजी ने निरंतर 'ॐ नमः शिवाय' के महामंत्र के उच्चारण करने को कहा, इसके निरंतर जाप से व्यक्ति का ध्यान भगवान में केंद्रित होता है और उसकी आस्था व विश्वास बढ़ता है।
एक बार भक्तों से सत्सांग के दौरान उन्होंने कहा 'मैं भोले बाबा यानी सीधे-साधे पिता की तरह हूँ। मैं कोई नहीं हूँ , मैं कुछ नहीं हूँ। मैं केवल आईने में एक प्रतिबिम्ब की तरह हूँ जिसमें आप भक्त स्वयं को देख सकते हैं। मैं प्रज्ज्वलित अग्नि की तरह हूँ, ज्यादा दूर रहोगे तो उसकी उष्णता महसूस नहीं होगी, लेकिन अगर ज्यादा पास आओगे तो स्वयं को जला लोगे। इसलिए सही दूरी में रहना सीखो।
एक अनुयायी गौरा देवी ने कहते हुए सुना ' मैं किसी का गुरु नहीं हूँ, मैं गुरुओं का गुरु हूँ। '
मैं ही महाप्रभुजी हूँ । मैं हर जगह हूँ, आपकी प्रत्येक सांस में भी। मैं तुम्हें विभाजन से परे एकता का अनुभव कराने आया हूँ। मैं तुम्हें ऐसी आज़ादी का मार्ग दिखाऊंगा जो आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। तुम्हें जानना चाहिए कि हम सब एक हैं।
जाति और पंथ से भेदभाव करना छोड़ दो, सबका एक धर्म, एक जाति, एक पंथ होना चाहिए वह है- मानवता
मानवता की सेवा ही सबसे बड़ी व पहली सेवा है।
'मैं और मेरा' इस भावना ने लोगों के हृदय को कठोर बना दिया है, लोग स्वार्थी और आत्म-केंद्रित हो चुके हैं।
ऐसे मन में कहाँ शांति होगी जो स्वार्थी और घमंड से भरा हुआ है ?
अच्छा सोचे-अच्छा बनें-अच्छा करें।
जीवन में सत्य के मार्ग पर चलने के लिए आलस्य त्यागें और परिश्रमी बनें।
ॐ नमः शिवाय
रवि जोशी, भक्त लेखक