पहाड़ के गुफा में विराजित, सर्वत्र पूज्यनीय, माता कोटवी देवी, घुंसेरा, पिथौरागढ़

माता कोटवी- एक पौराणिक शक्तिपीठ

पौराणिक मान्यताओं में देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र जिसे केदारखंड भी कहा गया है, को भगवान शंकर की तपस्थली और कूर्मांचल या कुमाऊं क्षेत्र को उनकी सहचरणी आदिशक्ति का निवास स्थान माना गया है। यूं तो उत्तराखंड राज्य अपने अंचल में समेटी हुई सुरम्य नैसर्गिक सुंदरता, अनुपम शस्यस्यामला धरा और उत्तुंग हिम शिखरों के लिए तो जगत विख्यात है हि किंतु जब बात देव भूमि उत्तराखंड की होती है तो यहां के कंकर-कंकर में विराजमान शंकर और क्षण-क्षण में उपस्थित आदि शक्ति का आभास सहज रूप से ही हो जाता है।
जहां एक ओर हिमालय के केदारखंड में जटा जूट चंद्रमौली शिव शांत, एकांत में समाधिमग्न हैं, वहीं आदि शक्ति जगदंबा पूर्वांचल में नाना रूपों-स्वरूपों में पूजित हैं। कहीं वे शांत, सौम्य और सुंदर रूप में विराजित हैं, तो कहीं उग्र, रौद्र और भयानक रूप में भी उपस्थित हैं। भक्त चाहे इनके जिस गुण, रूप-स्वरूप की आराधना करें वह दैविक, दैहिक और भौतिक ताप-संताप को हरने वाला कल्याणकारी मातृ रूप ही है।
देवी का एक ऐसा ही अनोखा स्वरूप पिथौरागढ़ जनपद के एक छोटे से गांव घुनसेरा में स्थापित है। जिसका अस्तित्व ईसा से 1500 वर्ष पूर्व का माना गया है। देवी के इस रूप को कोटवी भी कहा गया है, कोटवी इसलिए क्योंकि मान्यता है कि पौराणिक काल खंड में देवता भी यहां मां भगवती की कृपा छाया में शरणागति प्राप्त करते थे जहां जगदंबा स्वयं अभय मुद्रा से उन्हें मातृवत् सुरक्षा प्रदान करती थी।
माता का यह मंदिर एक ऊंचे पहाड़ पर गुफा रूप में सुशोभित है। इसके गर्भ गृह में अनवरत बहते जल के कई छोटे-छोटे कुंड हैं। यहां पर स्थापित देवी की लगभग 3 फीट ऊंची मूर्ती के 2 हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में कमंडल और दूसरे में माला है। काले पत्थर से बनी देवी की प्रतिमा की खास बात यह है कि इन्होंने अधोवस्त्र पेटीकोट पहना हुआ है जिस कारण यह नाभि दर्शना है। बागेश्वर जनपद के बैजनाथ में जिस काले पत्थर और शैली में मां नंदा की प्रतिमा उकेरी गई है उसी तरह के पत्थर और शिल्प में माता कोटवी की मूर्ति भी गढ़ी गई है।
घुनसेरा गांव समेत आसपास के अन्य 22 गावों में भी माता कोटवी की बहुत मान्यता है। जिसका प्रमाण यहां प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र में उठने वाले देवी के डोले से मिलता है। माता का यह डोला अन्य 22 गांव से होता हुआ अंत में यहां विश्राम लेता है।
मंदिर के गर्भ गृह में देवी की प्रतिमा के अतिरिक्त पंचमुखी भगवान शिव अकेले भी हैं और गौरी शंकर के युगल रूप में भी। भगवान विष्णु शेषशैय्या पर योग निद्रा मग्न है और सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा हाथ में कमंडल लिए खड़े हैं।

कहते हैं कि जब बात आस्था की होती है तो इसमें तर्क, वितर्क और कुतर्क के लिए कोई स्थान रिक्त नहीं रह पाता। ऐसे ही आस्था इस मंदिर के गर्भ गृह के भीतर से अनादि काल से बहती जलधारा की भी है जिसे गुप्त गंगा की संज्ञा दी गई है। इस जल के सेवन-पूजन से त्रितापों और समस्त प्रकार के पापों का समूल नाश हो जाता है, ऐसी यहां मान्यता है। गर्भ गृह के भीतर प्रवेश करते ही किसी अज्ञात, सकारात्मक, पराभौतिक, परम शक्ति का अहसास होने लगता है।
जनपद मुख्यालय पिथौरागढ़ से लगभग 10 से 12 किलोमीटर दूर गांव में स्थित प्राचीन मंदिर वास्तव में दर्शनीय स्थल है।