सर्वकामप्रद श्रीगणेशाष्टकम

सर्वकामप्रद श्रीगणेशाष्टकम

सर्वकामप्रद श्रीगणेशाष्टकम

श्री गणेश पुराण के अंतर्गत उपासना खंड में महर्षि कश्यप की प्रेरणा से भक्तों ने सामूहिक रूप से इस श्रीगणेशाष्टक स्तोत्र को भगवान गजानन के प्रति कहा है। जिससे प्रसन्न होकर भगवान् गणेश ने स्वयं प्रकट होकर आश्वासन देते हुए कहा कि इस स्तोत्र का पाठ करने से समस्त कामनाओं की सिद्धि हो जाएगी। कारागार में बॅंधे हुए तथा राजा के द्वारा वध-दंड पाने वाले कैदी भी इस स्तोत्र का पाठ करने से बंधन-मुक्त हो जाएंगे; इस स्तोत्र का पाठ करने से विद्यार्थी को विद्या, पुत्रार्थी को पुत्र; कामार्थी को समस्त मनोवांछित कामनाओं तथा गणेश-भक्ति की प्राप्ति हो जाएगी।

सर्वे ऊचु:

यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवा यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते ।

यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नं सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। १ ।।

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता ।

तथेन्द्रादयो देवसंघा मनुष्या: सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। २ ।।

यतो वह्निभानूद्भवो भूर्जलं च यत: सागराश्चन्द्रमा व्योम वायु: ।

यत: स्थावरा जंगमा वृक्षसंघा: सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। ३।।

यतो दानवा: किन्नरा यक्षसंघा यतश्चारणा वारणा: श्वपदाश्च ।

यत: पक्षिकीटा यतो वीरुधश्च सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। ४ ।।

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यत: सम्पदो भक्तिसंतोषिका: स्यु: ।

यतो विघ्ननाशो यत: कार्यसिद्धि: सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। ५ ।।

यत: पुत्रसम्पद् यतो वांछितार्थो यतोऽभक्तविघ्नस्तथानेकरूपा: ।

यत: शोकमोहौ यत: काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। ६ ।।

यतोऽनन्तशक्ति: स शेष बभूव धराधारेणऽनेकरूपे च शक्त: ।

यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। ७ ।।

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभि: सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति ।

परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ।। ८ ।।

श्रीगणेश उवाच

पुनरूचे गणाधीश: स्तोत्रमेतत्पठेन्नर: । त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भविष्यति ।। ९ ।।

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् । अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धिरवाप्नुयात् ।। १० ।।

य: पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने । से मोचयेद् बन्धगतं राजवध्यं न संशय: ।। ११ ।।

विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् । वांछितॉंल्लभते सर्वानेकविंशतिवारत: ।। १२ ।।

यो जपेत् परया भक्त्या गजाननपरो नर: । एवमुक्त्वा ततो देवश्चान्तर्धानं गत: प्रभु: ।। १३ ।।

 

।। इति श्रीगणेश पुराणे उपासनाखण्डे (९१।५२) श्रीगणेशाष्टकम् सम्पूर्णं ।।

 

सब भक्तों ने कहा-

जिन अनंत शक्ति वाले परमेश्वर से अनंत जीव प्रकट हुए हैं; जिन निर्गुण परमात्मा से अप्रमेय (असंख्य) गुणों की उत्पत्ति हुई है; सात्विक, राजस और तामस-इन तीन भेदों वाला यह संपूर्ण जगत् जिनसे प्रकट एवं भासित हो रहा है, उन गणेश का हम नमन एवं भजन करते हैं।।१।। जिनसे इस समस्त जगत का प्रादुर्भाव हुआ है; जिनसे कमलासन ब्रह्मा, विश्वव्यापी शिवरक्षक विष्णु, इंद्र आदि देव-समुदाय और मनुष्य प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन करते वचन करते हैं।।२।। जिनसे अग्नि और सूर्य का प्राकट्य हुआ; पृथ्वी, जल, समुद्र, चंद्रमा, आकाश और वायु का प्रादुर्भाव हुआ तथा जिनसे स्थावर-जंगम और वृक्षसमूह उत्पन्न हुए हैं, उन गणेश का हम नमन एवं भजन करते हैं।।३।। जिनसे दानव, किन्नर और यक्ष समूह प्रकट हुए हैं; जिनसे हाथी और हिंसक जीव उत्पन्न हुए तथा जिन से पक्षियों, कीटों और लता-बेलों का प्रादुर्भाव हुआ, उन गणेश का हम सदा ही नमन और भजन करते हैं।।४।। जिनसे मोक्ष को बुद्धि प्राप्त होती है और अज्ञान का नाश होता है; जिनसे भक्तों को संतोष देने वाली संपदाएं प्राप्त होती हैं तथा जिनसे विघ्नों का नाश और समस्त कार्यों की सिद्धि होती है, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।।५।। जिनसे पुत्र-संपत्ति सुलभ होती है; जिनसे मनोवांछित अर्थ सिद्ध होता है; जिनसे अभक्तों को अनेक प्रकार के विघ्न प्राप्त होते हैं तथा जिनसे शोक, मोह और काम प्राप्त होते हैं, उन गणेश का हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।।६।। जिनसे अनंत शक्ति संपन्न सुप्रसिद्ध शेषनाग प्रकट हुए; जो इस पृथ्वी को धारण करने एवं अनेक रूप ग्रहण करने में समर्थ हैं; जिनसे अनेक प्रकार के अनेक स्वर्गलोक प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं।।७।। जिनके विषय में वेद वाणी कुण्ठित है; जहॉं मन की भी पहुॅंच नहीं है तथा श्रुति सदा सावधान रहकर 'नेति-नेति' - इन शब्दों द्वारा जिनका वर्णन करती है; जो सच्चिदानन्द स्वरूप परब्रह्म हैं, उन गणेश जी का हम सदा ही नमन एवं भजन करते हैं।।८।।

 

श्री गणेश जी बोले-

जो मनुष्य तीन दिनों तक तीनों सन्ध्याओं के समय इस स्तोत्र का पाठ करेगा, उसके सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे।।९।। जो आठ दिनों तक इन आठ श्लोकों का एक बार पाठ करेगा और चतुर्थी तिथि को आठ बार इस स्तोत्र को पढ़ेगा, वह आठों सिद्धियों को प्राप्त कर लेगा।।१०।। जो एक मास तक प्रतिदिन दस-दस बार इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह कारागार में बॅंधे हुए तथा राजा के द्वारा वध-दंड पाने वाले कैदी को भी छुड़ा लेगा, इसमें संशय नहीं है।।११।। इस स्तोत्र का इक्कीस बार पाठ करने से विद्यार्थी विद्या को, पुत्रार्थी पुत्र को तथा कामार्थी समस्त मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।।१२।। जो मनुष्य पराभक्ति से इस स्तोत्र का जप करता है, वह गजानन का परम भक्त हो जाता है-ऐसा कहकर भगवान गणेश वही अंतर्धान हो गए।।१३।।

 

इस प्रकार श्री गणेश पुराण में श्री गणेशाष्टकम संपूर्ण हुआ