शनैश्चरस्तोत्रम्-दशरथ कृत शनैश्चरस्तोत्रं

शनैश्चरस्तोत्रम्-दशरथ कृत शनैश्चरस्तोत्रं

दशरथ कृत शनि स्तोत्र शनिदेव को प्रसन्न करने का शक्तिशाली मंत्र है इस मंत्र के नियमित जाप से निश्चित रूप से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। यदि किसी जातक के कुंडली में शनि पीड़ादायक स्थिति में बैठा हुआ है, चन्द्रमा शनि की दृष्टि में है या अपनी नीच राशि में है तो यह मंत्र शनि देव को प्रसन्न करता है और जातक को विभिन्न समस्याओं, अवांतर घटनाओं से बचाता है।
शनि साढ़ेसाती के दौरान यदि इस मंत्र का नियमित पाठ किया जाए तो निश्चित रूप से साढ़ेसाती की पीड़ा कम होती है। मनोयोग से, भाव विभोर होकर, शुद्ध उच्चारण से इस मंत्र का नियमित पाठ शनिदेव को अति प्रसन्न करता है।
यदि इस मंत्र का पाठ पीपल के वृक्ष के नीचे या शनि मंदिर में किया जाए तो इसके फल में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए चिड़ियों को दाना देना भी उत्तम उपाय है और चिड़ियों के लिए पानी की व्यवस्था करना शनिदेव को प्रसन्न करने में सहायक होता है।

।।ॐ शं शनिश्चराय नमः।।

शनैश्चरस्तोत्रम्
दशरथ उवाच

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः
कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा
गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा
वन्याश्च ये कीटपतंगभृगाः
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र
सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
तिलैर्यवैर्माषगुडान्न्दानै्र-
लोहेन नीलाम्बरदानतो वा
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
प्रयाग कूले यमुनातटे च
सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्
तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्
गृहाद्गतो यो न पुनः प्रयाति
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
सृष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य
त्राता हरीशो हरते पिनाकी
एकस्त्रिधा ऋृग्यजुःसाममूर्तिस्
तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते
नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः
प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते

कोणस्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः
एतानि दश नमानि प्रातरुत्थाय यः पठेत
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति

इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम्

यह स्तोत्र शनिदेव को प्रसन्न करने का मंत्र है । इस मंत्र के नियमित जाप से से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते है।
यदि किसी जातक के कुंडली में शनि पीड़ादायक स्थिति में बैठा हुआ है, चन्द्रमा शनि की दृष्टि में है या अपनी नीच राशि में है तो यह मंत्र शनि देव को प्रसन्न करता है और जातक को विभिन्न समस्याओं, अवांतर घटनाओं से बचाता है।
शनि साढ़ेसाती के दौरान यदि इस मंत्र का नियमित पाठ किया जाए तो निश्चित रूप से साढ़ेसाती की पीड़ा कम होती है। मनोयोग से, भाव विभोर होकर, शुद्ध उच्चारण से इस मंत्र का नियमित पाठ शनिदेव को अति प्रसन्न करता है।
यदि इस मंत्र का पाठ पीपल के वृक्ष के नीचे या शनि मंदिर में किया जाए तो इसके फल में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है। शनि मंदिर में तेल का दिया जलाते हुए इस मंत्र का पाठ करना चाहिए।

शनिदेव की कृपा प्राप्ति के उपाय
१. सूर्योदय के पूर्व प्रति शनिवार पीपल वृक्ष के नीचे एक लोटा जल चढ़ाएं। अगरबत्ती, धूप जलाकर सरसों तेल का दीपक जलाएं।
२. सूर्योदय के पूर्व या सूर्यास्त के पश्चात शनि स्त्रोत या मंत्र का पाठ करें।
३. काली गाय का पूजन कर गाय को काले चने के साथ गुड़ खिलाएं।
४. काले कुत्ते या कौवे को तेल में तली हुई गुड़ की मीठी रोटी दें।
५. भिखारी, अपाहिज, कोढ़ी व्यक्ति को शनिवार के दिन काले वस्त्र, लोहे की बनी दैनिक जीवन में उपयोगी सामग्री दान में दें।
६. किसी प्रसिद्ध जागृत् शनिस्थली में जाकर शनिदेव का अभिषेक करें।

।।ॐ शं शनिश्चराय नमः।।

दशरथ कृत शनि स्तोत्रम्