पाप नाशिनी गंगा का प्रकटोत्सव है गंगा दशहरा……

पाप नाशिनी गंगा का प्रकटोत्सव है गंगा दशहरा......

गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है। गंगा दशहरा पर्व पापनाशिनी गंगा नदी के धरती पर अवतरण का वाहक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गंगा दशहरा के दिन ही राजर्षि भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा धरती पर आई थी। हिंदू धर्म में गंगा को पतित पावनी कहा गया है । अतः गंगा में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है ।

भारतवर्ष के पौराणिक राजवंशों में सबसे प्रसिद्ध राजवंश इक्ष्वाकु वंश है। इस कुल की २८वीं  पीढ़ी में राजा हरिश्चंद्र हुए जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया। इसी कुल की ३६वीं पीढ़ी में अयोध्या नगरी में सगर नाम के महा प्रतापी, दयालु, धर्मात्मा और प्रजा हितैषी राजा हुए। गर का अर्थ है विष अर्थात् विष के साथ पैदा होने के कारण उनका नाम सगर पड़ा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाराज सगर की दो पत्नियां थी।  महाराज सगरने पुत्र प्राप्ति हेतु कैलाश पर जाकर दोनों पत्नियों के साथ भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी एक रानी से ६०,००० पुत्र होंगे तथा दूसरी रानी से केवल १ पुत्र होगा वही तुम्हारे वंश को चलाने वाला होगा।

कहते हैं कि एक बार महाराजा सगर ने १०० अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। राजा सगर ने यज्ञ की रक्षा का भार अपने पुत्र अंशुमान को सौंपा। राजा सगर के अश्वमेघ यज्ञों से चिंतित होकर इंद्र ने यज्ञ में विघ्न डालने के उद्देश्य से यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया।

परिणामत: अंशुमान ने स्वयं तथा अपने ६०,००० भाइयों के साथ अश्व को खोजना प्रारंभ कर दिया। संपूर्ण भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला। ढूंढते ढूंढते  महाराज सगर के पुत्र पाताल लोक तक पहुंच गए तब उन्होंने देखा कि भगवान् महर्षि कपिल के रूप में तपस्या कर रहे हैं वहीं पास में यज्ञ का अश्व भी विचरण कर रहा था। जिसे देखकर महाराज सगर के पुत्रों ने महर्षि को चोर समझकर यह कहने लगे कि तुमने हमारे अश्वमेध यज्ञ का अश्व चुराकर यहां पहुंचा दिया है। इस प्रकार शोर सुनकर महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्योंही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले त्यों ही महाराज सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गये । जब महाराज अंशुमान कपिल मुनि के पास पहुंचे तब तक उनके ६०,०००  भाई भस्म हो चुके थे। महाराज अंशुमान ने महर्षि कपिल से क्षमा मांगी तथा उन्हें प्रणाम कर अपने भाइयों के उद्धार के लिए प्रार्थना की।  महर्षि कपिल की आज्ञा अनुसार अंशुमान ने स्वर्ग से गंगा को भारत भूमि की धरती पर लाने की कामना से घोर तपस्या की । उनका और उनके पुत्र दिलीप का संपूर्ण जीवन इसमें लग गया परंतु उन्हें सफलता नहीं मिल सकी।  महाराज सगर के वंश में अनेक राजा हुए सभी ने अपने पूर्वजों की भस्म को गंगा में प्रवाह द्वारा पवित्र करने का भरसक प्रयत्न किया । परंतु सफल नहीं हो सके। तत्पश्चात् दिलीप के पुत्र भगीरथ ने यह बीड़ा उठाया और गंगा को इस लोक में लाने हेतु गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। तप करते-करते कई-कई वर्ष व्यतीत हो जाने पर तप से प्रसन्न ब्रह्मा जी ने भगीरथ से वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने अपने पूर्वजों और पृथ्वी के कल्याण हेतु गंगा की मांग की । तब ब्रह्मा जी ने कहा राजन! तुम गंगा को पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो पर क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार व वेग को संभाल पाएगी? मेरे विचार से गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है इसलिए उचित होगा कि गंगा का भार व वेग संभालने के लिए भगवान शंकर का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।

भगीरथ ने वैसा ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटायें बांध ली। परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का मार्ग नहीं मिल सका। तब राजा भगीरथ ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया । इस प्रकार शिव की जटाओं से छूट कर गंगा हिमालय में ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित बिंदु सर सरोवर में गिरी। उसी समय इनकी ७ धाराएं हो गई। आगे-आगे राजा भगीरथ रथ पर चल रहे थे पीछे-पीछे गंगा की सातवीं धारा चल रही थी।

गंगा के पृथ्वी पर आते ही हाहाकार मच गया। जिस रास्ते से गंगा जा रही थी उसी मार्ग में ऋषि राज जहु का आश्रम था तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगा को पी गये । फिर देवताओं की प्रार्थना पर गंगा को  पुनः जॉघ से निकाल दिया। तभी से गंगा जाह्नवी कहलाई। इस प्रकार अनेक स्थलों का तरण तारण करती हुई गंगा ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सगर के साठ हजार पुत्रों के भग्नावशेषों को तार कर उन्हें मुक्त किया। उसी समय ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर भगीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हजार पुत्रों को अमर होने का वरदान दिया। तथा भगीरथ से कहा कि तुम्हारे नाम से ही गंगा का नाम भागीरथी होगा। अब तुम अयोध्या जाकर अपना राज काज संभालो। कहा जाता है कि गंगा दशहरा को गंगा के प्रकट होने के बाद  गंगा हिमालय से निकलकर मैदानी भागों को होते हुए मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में स्थित कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची। वर्तमान में  कपिल मुनि का आश्रम गंगासागर पर ही स्थित है जहां गंगा, सागर में मिलती है इसलिए हिन्दू धर्म के अनुसार मकर संक्रांति को गंगासागर में स्नान का बड़ा महत्व है।

कुमायूं में इसे गंगा दशहरा ना कह कर केवल दशहरा कहा जाता है। आज के दिन कुमायूं में पुरोहितों के द्वारा निर्मित घर के दरवाजे पर गंगा दशहरा द्वार पत्र लगाया जाता है । जिसमें वज्र निवारण मंत्र लिखा रहता है। इसको लगाने के पीछे की किंवदंती यह है कि इससे भवन अथवा मकान पर वज्रपात, बिजली आदि प्राकृतिक प्रकोपों का  विनाशकारी प्रभाव नहीं पड़ता।

श्री जगदीश जोशी, अल्मोड़ा