बेतालेश्वर मंदिर, अल्मोड़ा

अष्ट भैरवों और नवदुर्गाओं से रक्षित अल्मोड़ा नगर के खत्याड़ी के पास बेतालेश्वर मंदिर स्थित है। बेतालेश्वर में शिव का मंदिर है। इस नगर की सीमा से लगे हुए गांवों के दिवंगत हुए लोगों की अंतिम यात्रा यहीं पूरी होती है। बेतालेश्वर यहां के लोगों में ‘नगर कोतवाल’ के नाम से लोकप्रिय हैं। चंद काल से मंदिर चर्चा में आया होगा, क्योंकि यहां पर जीर्ण हुई धर्मशाला इस बात का साक्ष्य प्रकट करती हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को यहां शिव भक्त जलाभिषेक करते हैं। भक्त भगवान् शिव का जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक कर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। शिव मंदिर के रूप में बेतालेश्वर में भी प्रातः काल से ही पूजा-अर्चना प्रारंभ होती है और देर शाम तक लोग पूजा-अर्चना के लिए आते रहते हैं। अल्मोड़ा के लोग रत्नेश्वर, बद्रेश्वर, नर्मदेश्वर, बालेश्वर, पाताल देवी, एन.टी.डी. शिवालय, कमलेश्वर, देवस्थल, विश्वनाथ आदि के साथ इस मंदिर में आकर भगवान् भोलेनाथ का स्तवन और पूजन करते हैं।

बेतालेश्वर अर्थात् ‘बेतालों के ईश्वर’। बेतालों के ईश्वर कौन है? इस प्रश्न का उत्तर हमें मिलता है-शिव। शिव को हम ‘रूद्र’ नाम से भी जानते हैं। उनकी अर्धांगिनी, माता पार्वती हैं। जिनको हम ‘शक्ति’ कहते हैं। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। इनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों ही रूपों में की जाती है। इनके गले में नागों की माला विराजमान है। हाथों में डमरू और त्रिशूल हैं। इनका वास कैलाश पर्वत में है। इन्हें संहार का देवता भी कहा जाता है। इनका सौम्य रूप भी है और रौद्र भी। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति भगवान् शिव ही हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदी स्रोत हैं। ये महाकाल हैं, त्रिकालदर्शी हैं, स्वयंभू हैं, अविनाशी और घटघटवासी हैं।

अल्मोड़ा नगर की एक दिशा में विश्वनाथ विराजमान हैं, तो दूसरी दिशा में बेतालनाथ। दोनों ही इस नगर के निवासियों, आसपास के ग्रामीणों को मुक्ति दिलाते हैं। उनके दुखों का हरण करते हैं, और रक्षण करते हैं। अल्मोड़ा नगर के खत्याड़ी से नीचे बेतालेश्वर में भगवान् शिव का मंदिर स्थापित है। बेस अस्पताल से विकास भवन जाने वाले सड़क मार्ग पर यह लगभग ५ से ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में जाने के लिए लगभग ५०० मीटर नीचे उतरना पड़ता है और अल्मोड़ा बाजार से लगभग ४ किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यह चीड़ के जंगलों के मध्य स्थित है इसके चारों ओर गर, भनार, सिमकुकुड़ी, रैखोली, तराड़, बाड़ी, खत्याड़ी, सैनार, पाली आदि कई गांव स्थित हैं। इसको यहां का जनमानस सिद्धपीठ मानता है। मंदिर में एक प्राकृतिक शिवलिंग है। इसकी गहराई कितनी है, यह कोई भी नहीं जानता। सब इसको बेतालेश्वर या बेताल नाथ के नाम से जानते हैं।

बेतालेश्वर मंदिर का इतिहास कितना पुराना रहा होगा, यह सब अतीत के गर्भ में है, किंतु मंदिर के पास अवशेषों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह स्थान पूर्व में पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा होगा। इस मंदिर की प्राचीनता पर साहित्यकार त्रिभुवन गिरी महाराज कहते हैं कि हमने भी अपने बाल्यकाल से ही बेतालेश्वर को ‘नगर कोतवाल’ के रूप में सुना था, लेकिन हमें उनके बारे में कहीं भी जानकारी नहीं मिली। हां! यह प्रश्न बार-बार मन मस्तिष्क में उभरकर आता है कि नगर कोतवाल इतने नीचे क्यों बसे होंगे? जबकि अगर नगर कोतवाल थे, तो उन्हें नगर के बीचो-बीच स्थापित होना था। उस दौर में द्योलीडांडा में बुजुर्ग जाया करते थे और बेतालेश्वर में युवाओं की भीड़ रहती थी। विश्वनाथ में मंदिर की प्राचीनता दिखाई पड़ती है, लेकिन बेतालेश्वर में उतनी प्राचीनता नहीं, क्योंकि विश्वनाथ में बीरखंभ भी मिलते हैं, किंतु बेतालेश्वर में ऐसा कुछ नहीं दिखाई पड़ता। मंदिर के संबंध में वे कहते हैं कि किसी को स्वप्न हुआ कि अगर मंदिर बन रहा है, तो इस मंदिर को इतना उठाओ जिससे कि रामशिला मंदिर भी यहां से दिखाई दे। रामशिला वह स्थान है, जहां भगवान् श्री राम के चरण खुदे हैं। अल्मोड़ा नगर में तीन जगह श्रीराम के चरण दिखाई देते हैं। कचहरी, माल रोड और बेतालेश्वर में राम चरणों को जनमानस आस्था के भाव से देखता है। मैंने दर्जा ६ से बेतालेश्वर को देखा। तब वहां नेपाली महाराज रहते थे। लगभग ६५ वर्ष पूर्व से ही हम बेतालेश्वर जाया करते थे, वहां पर एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था। आज से करीब ६० वर्ष पूर्व उतनी बड़ी छत नहीं हुआ करती थी। उस समय एक सीधे सरल बाबा वहां निवास करते थे। आज बेतालेश्वर मंदिर का सौंदर्यीकरण होने से वह चर्चा में भी आ गया है। वे बताते हैं कि वहां के आस-पास के गांव के पुजारी वहां पूजा अर्चना करते हैं।

इस मंदिर की प्राचीनता पर ७४ वर्षीय वयोवृद्ध श्री सूरज साह कहते हैं कि आज से करीब ६७ साल पहले मैं अपनी दादी के साथ बेतालेश्वर मंदिर पैदल जाता था। मेरी दादी की जब संतान नहीं हुई थी, तब वह बेतालेश्वर में एक रात हाथ में नारियल पकड़कर खड़ी रही। उनकी बेतालेश्वर में बड़ी आस्था रही है। दादी घर आकर कई बार झसकने लगी थी। मुनस्यारी से नारायण स्वामी जी जब कभी अल्मोड़ा आते थे तो वह हमारे घर आते थे। उस समय नारायण स्वामी जी अल्मोड़ा के गुरु हुआ करते थे। दादी के झसकने पर उन्होंने उसे देखा और कहा कि इस पर तो बेताल नाथ की कृपा हुई है। बेतालेश्वर के वरदान से ही दादी का पुत्र हुआ। उन्होंने ही मेरे पिता का नाम बेतालनाथ की वजह से नाथ साह रखा। वे कहते हैं कि बेतालेश्वर और जागेश्वर में मुझे कोई फर्क महसूस नहीं होता। इस मंदिर में पहले दनपुरी बाबा रहा करते थे। उनको सपना हुआ कि इस मंदिर को इतना ऊंचा उठाना है कि यहां से जागेश्वर दिख सके या फिर इसके चारों दिशाओं को खोल देना। बाबा ने जीर्णोद्धार के वक्त इसको ढका और चारों दिशाएं खोलीं। मन्नत पूरी होने पर नगर के राम अवतार जी ने इसका जीर्णोद्धार कराया। यह पूर्व में टीन का बना हुआ था, जो दनपुरी महाराज ने बनाया था। बाद में सीमेंट का प्रयोग कर इसका जीर्णोद्धार कराया गया।

मंदिर की पुजारी श्री दिनेश चंद्र जोशी ‘कन्नू’ बताते हैं कि "बेतालेश्वर मंदिर उनके पुरखों से जुड़ा हुआ है। वे कहते हैं कि हमारे दादाजी यहां पूजा आराधना करते थे। उन्होंने यहां पूजा करते-करते अपने शरीर को त्याग दिया था। उसके बाद यहां लोगों ने पूजा अर्चना की। बाद में सन् १८८९ से मैं पूजा अर्चना कर रहा हूं। वे कहते हैं कि भगवान से जुड़ना हर किसी के बस में नहीं, उनसे वही जुड़ सकता है जो आस्थावादी हो। जो शिव का भक्त हो। जन आस्था को लेकर वे कहते हैं कि यहां के लोगों की आस्था इनसे गहरी जुड़ी है। यहां के गांव के लोग, पुजारी परिवार, यहां के साधू बाबाओं से मिलकर मंदिर की सेवा करते हैं।"

मंदिर में होने वाली आश्चर्यजनक घटनाओं को लेकर वे कहते हैं कि यहां भक्तों को चमत्कारिक अनुभव होते रहते हैं, किंतु उन्हें बताना सही नहीं है। बस यह कहा जा सकता है कि यहां बाबा बेताल नाथ की चमत्कारी घटना घटित होती रहती हैं। जन आस्था को लेकर वे कहते हैं कि बाबा बेताल नाथ के प्रति जनमानस की श्रद्धा बहुत गहरी है। दूर-दूर से यहां पर भक्त आते हैं। मन्नतें पूर्ण होने पर वे चढ़ावा चढ़ाते हैं। कई भक्त यहां तक कहते हैं कि हमारे पास खाने के लिए रोटी तक नहीं हुआ करती थी। हमने आस्था भाव से एक लोटा जल बाबा बेतालेश्वर पर चढ़ाया तो आज हमारे पास हवाई जहाज से आने-जाने तक के लिए धन उपलब्ध हो चुका है। आज हमारे पास सुख-समृद्धि है।

मंदिर में साधुओं के संबंध में वे बताते हैं कि "यहां पर तीन बाबाओं की समाधियां हैं- एक गोरख बाबा और एक दनपुरिया बाबा जी की, एक साधू का नाम ज्ञात नहीं है। ये हमारे पुरखों के समय वहां रहते थे। उसके बाद एक अन्य बाबा भी यहां पर रहे, जिनकी समाधियां मंदिर के पास ही हैं। इन तीसरे बाबा ने मुझे गोद लिया था। बाद में मैं मंदिर का होकर रह गया।"

बेतालेश्वर धाम पुस्तक का एक अंश


 

लेखक


प्रो.(डॉ.) नरेन्द्र सिंह भन्डारी

माननीय कुलपति,

सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, उत्तराखंड