हिमालयी संत श्री श्री १०८ नानतिन महाराज जी द्वारा कोरोना का आयुर्वेदिक उपचार

हिमालयी संत श्री श्री १०८ नानतिन महाराज जी द्वारा कोरोना का आयुर्वेदिक उपचार

हम जानते हैं कि वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी से प्रभावित है। मुख्यतः हमारे देश में इस महामारी का विकृत रूप देखने को मिल रहा है जिस हेतु मेडिकल साइंस और वर्तमान सरकार के अथक प्रयासों द्वारा प्रत्येक नागरिक को वैक्सीन लगाई जा रही है, एवं सरकार सभी उपकरणों की सहायता से प्रयासरत हैं।

भारतीय मनीषियों एवं संतों द्वारा अनेक वर्षों पूर्व आयुर्वेद का सृजन किया गया,  जिसके सेवन से आज भी अनेक लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इसी संदर्भ में हमारे सिद्ध पुरुष गुरुदेव नानतिन बाबा जी ने बहुत समय पहले ही कोरोना जैसी लक्षणयुक्त महामारी के उपचार हेतु दवा का प्रयोग सबको कराया, जबकि कोरोना नाम का कोई भी रोग संसार में नहीं था। भविष्य में ये दवा काम आएगी, ऐसे गुरुदेव नानतिन बाबा जी के वचनों से हमें जानकारी है।

महाराज जी के कलम से लिखी पांडुलिपि के आधार पर कोरोना महामारी के उपचार हेतु दवा इस प्रकार बनाई जाएगी।

सौंठ पाउडर एवं गुड़ को एक अनुपात दो में आपस में मिश्रित किया जाना है। अर्थात् यदि १०० ग्राम सौंठ है तो उसमें २०० ग्राम गुड़ मिलाया जाएगा। इस मिश्रण को प्रत्येक दिन ३ समय; प्रातः खाली पेट, दोपहर भोजन के बाद एवं रात्रि सोते समय एक-एक चम्मच, २०० ग्राम ताजे पानी  के साथ सेवन किये जाने की संस्तुति की गयी है। ध्यान रखा जाए की पानी न उबला और न ही फ्रीज का हो। महाराज जी बताते हैं कि इसके प्रतिदिन सेवन से कोरोना नहीं होगा, यदि कोरोना हुआ है तो ठीक हो जाएगा व भविष्य में नहीं होगा। शुगर से परेशानी वाले भी सौंठ गुड़ ले सकते हैं, इसके सेवन से कोई दुष्परिणाम नहीं होगा।

श्री गुरुदेव नानतिन महाराज जी की कृपा व प्रेरणा से यह दवा लिखी गयी है। जो दवा प्रयोग करेंगे उन पर गुरुदेव भगवान की कृपा बनी रहेगी। सनातन धर्म के इस उपचार से अनेक लोगों को लाभ पहुंच चुका है। कोरोना महामारी के उपचार हेतु दवा की जानकारी मनुष्य के कल्याण हेतु प्रचारित एवं प्रसारित की जा रही है।

महाराज जी का वर्तमान में श्री नानतिन बाबा आश्रम, श्यामखेत, भवाली, जिला नैनीताल, उत्तराखंड में निवास है।

 

गुरुदेव भगवान् की जय

ॐ श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः

 

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्।

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