पंचाङ्ग ज्ञान

पंचाङ्ग ज्ञान

पंचाङ्ग दैनिक व्यवहार तथा धार्मिक कार्यों हेतु उपयोगी होने के साथ-साथ प्रांत विशेष के देशाचार व लोकाचार के प्रतीक रूप में रहने की आवश्यकता की भी पूर्ति करते रहते है। सामाजिक, धार्मिक व्यवहार पंचाङ्ग के बिना नहीं चल सकते ।

पाँच अंगों के होने के कारण ही इसे पंचाङ्ग कहा गया । इसके पाँच अंग निम्नवत् है।

(1) तिथि (2) वार (3) नक्षत्र (4) योग (5) करण

सभी अंगों का आधार सूर्य और चन्द्र की गति एवं स्थिति है।

  • तिथि

चंद्रमा की एक कला को तिथि कहते है। सूर्य और चंद्रमा के अंतराशों पर तिथि का मान निकाला जाता है।  सूर्य और चंद्रमा के परिभ्रमण में प्रतिदिन 12 अंशों का अंतर है।

सूर्य-चंद्रमा/12 = तिथि

हिन्दू पंचाङ्ग के आधार पर कुल तिथियों की संख्या 30 है जिसे 15 शुक्ल पक्ष और 15 कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। चन्द्रमा की सोलह कलाएं प्रतिपदा से पूर्णिमा तक तथा शुक्ल पक्ष में पड़वा से आमावस्या तक चलते रहती है। समय की गणना निम्नवत् की जाती है।

60 विकला = 1 कला

60 कला= 1 अंश

30 अंश= 1 राशि

12 राशि = 360 अंश (सम्पूर्ण भचक्र)

24 सेकंड = 60 विपल, 60 पल = 1 घड़ी, 60 घड़ी = एक अहोरात्र

  • वार

सूर्योदय से दूसरे दिन सूर्योदय तक को वार कहते है। सूर्योदय के समय जिस ग्रह की होरा होती है । उस दिन उसी ग्रह के नाम का वार होता है। एक ​वार का मान 24 घंटे या 60 घड़ी (चूँकि 2 ½ घड़ी =1 घंटा) होता है। एक दिन मे 24 होराऐं होती है । 1-1 घंटे की 1-1 होरा होती है। घण्टे का दूसरा नाम होरा है। 1वीं होरा का स्वामी सूर्य को माना जाता है अतः पहले वार का नाम रविवार, 2- चन्द्रमा 3- मंगल 4- बुध 5- वृहस्पति 6-शुक्र 7- शनि।

  • नक्षत्र

अनेक ताराओं के विशिष्ट आकृति वाले पुंज को ‘नक्षत्र’ कहते है। पृथ्वी के कुल 3600 के परिपथ को नक्षत्रों के लिए कुल 27 भागों में बाँटा गया है। अतः प्रत्येक नक्षत्र  का होगा और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते है और प्रत्येक चरण  का होगा ।

आकाश में परिभ्रमण करते हुए चन्द्रमा को क्रांति वृत के आरंभ स्थान से प्रत्येक नक्षत्र विभाग में घूमने में जितना समय लगता है। वह नक्षत्र भोग का समय होता है।

राशि नक्षत्र चरण प्रारम्भिक अंश समाप्त अंश स्वामी चरणाक्षर
मेष अश्विनी 4 00000’ 13020’ केतु चू, चे, चो, ला
भरणी 4 13020’ 26040’ शुक्र ली, लू, ले, लो
कृत्तिका 1 26040’ 30000’ सूर्य
वृष कृत्तिका 3 00000’ 10000’ सूर्य ई, उ, ए
रोहिणी 4 10000’ 23020’ चन्द्र आ, वा, वी, वू
मृगशिरा 2 23020’ 30000’ मंगल वे, वो
मिथुन मृगशिरा 2 00000’ 6040’ मंगल का, की
आर्द्रा 4 6040’ 20000’ राहु कू, घ, ड., छ
पुनर्वसु 3 20000’ 30000’ वृहस्पति के, को, हा
कर्क पुनर्वसु 1 00000’ 3020’ वृहस्पति ही
पुष्य 4 3020’ 16040’ शनि हू, हे, डो, डा
अश्लेषा 4 16040’ 30000’ बुध डी, डू, डे, डो
सिंह मघा 4 00000’ 13020’ केतु मा, मी, मू, मे
पूर्वफाल्गुनी 4 13020’ 26040’ शुक्र मो, टा, टी, टू
उ॰फाल्गुनी 1 26040’ 30000’ सूर्य टे
कन्या उ॰फाल्गुनी 3 00000’ 10000’ सूर्य टो, पा, पी
हस्त 4 10000’ 23020’ चन्द्र पू, ष, ण, ठ
चित्रा 2 23020’ 30000’ मंगल पे, पो
तुला चित्रा 2 00000’ 6040’ मंगल रा, री
स्वाती 4 6040’ 20000’ राहु रू, रे, रो, ता
विशाखा 3 20000’ 30000’ वृहस्पति ती, तू, ते
वृश्चिक विशाखा 1 00000’ 3020’ वृहस्पति तो
अनुराधा 4 3020’ 16040’ शनि ना, नी, नू, ने
ज्येष्ठा 4 16040’ 30000’ बुध नो, या, यी, यू
धनु मूल 4 00000’ 13020’ केतु ये, यो, भा, भी
पूर्वाषाढ़ा 4 13020’ 26040’ शुक्र भू, धा, फा, ढ़ा
उत्तराषाढ़ा 1 26040’ 30000’ सूर्य भे
मकर उत्तराषाढ़ा 3 00000’ 10000’ सूर्य भो, जा, जी
श्रवण 4 10000’ 23020’ चन्द्र खी, खू, खे, खो
धनिष्ठा 2 23020’ 30000’ मंगल गा, गी
कुम्भ धनिष्ठा 2 00000’ 6040’ मंगल गू, गे
शतभिषा 4 6040’ 20000’ राहु गो, सा, सी, सू
पूर्वभाद्र 3 20000’ 30000’ वृहस्पति से, सो, दा
मीन पूर्वभाद्र 1 00000’ 3020’ वृहस्पति दी
उत्तरभाद्र 4 3020’ 16040’ शनि दू, थ, झ, ण
रेवती 4 16040’ 30000’ बुध दे, दो, चा, ची

इसके अतिरिक्त उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण (राश्यादी = 9 राशी 6 अंश 40 कला 0 विकला) से श्रवण नक्षत्र के प्रथम 1/15वें भाग (राश्यादी = 9 राशी 10 अंश 53 कला 20 विकला) तक के चन्द्र में अभिजित नक्षत्र माना जाता है । जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध या केतु होते हैं, उन्हें मूल नक्षत्र कहते है जिनकी संख्या 6 है। कुम्भ एवं मीन राशियों में पंचक दोष माना जाता है।

  • योग

योग पंचांग में नैसर्गिक होता है। जो एक निश्चित दूरी का एक विभाजित माप होती है। सूर्य और चंद्रमा जब 800 कलाएं चलते हैं तब एक योग होता है।

चंद्रमा की यात्रा + सूर्य की यात्रा = योग

21,600 कलाएं अश्विनी से चल चुकने पर 27 योग बीतते हैं। और एक योग का मान  होगा। कुल योगों की संख्या 27 है।

संख्या योगों के नाम स्वामी संख्या योगों के नाम स्वामी
1 विषकुंभ यम 15 व्रज वरुण
2 प्रीति विष्णु 16 सिद्धि गणेश
3 आयुष्मान चंद्रमा 17 व्यतिपात रुद्र
4 सौभाग्य ब्रह्मा 18 वरीयन कुबेर
5 शोभन वृहस्पति 19 परिध मित्र
6 अतिगंड चंद्रमा 20 शिव कार्तिकेय
7 सुकर्मा इन्द्र 21 सिद्ध सावित्री
8 धृति जल 22 साध्य लक्ष्मी
9 शूल सर्प 23 शुभ पार्वती
10 गण्ड अग्नि 24 शुक्ल अश्विनी कुमार
11 वृद्धि सूर्य 25 ब्रह्मा पितर
12 ध्रुव भूमि 26 ऐंद्र दिति
13 व्याघात वायु 27 वैधृति  
14 हर्षण भग      
  • करण

तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं। 1 तिथि = 2 करण । ये कुल ग्यारह है जिनमें चर करण 7 हैं।

(1) बव (2) बालव (3) कौलव (4) तैतिल (5) गर (6) वणज (7) विष्टि

अचर करण 4 हैं।

  • शकुनि (2) चतुष्पद (3) नाग (4) किस्तुघ्न